Last modified on 30 मार्च 2025, at 19:41

महत्वाकांक्षा / संतोष श्रीवास्तव

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:41, 30 मार्च 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं दीवार पर ठुंकी
वह कील हूँ
जिसने ज़िन्दगी भर
तुम्हारी महत्त्वाकांक्षाओं की
इंद्रधनुषी
तस्वीर का बोझ उठाया

किसी ने नहीं जाना
किसी ने नहीं देखा
उस बोझ की पीड़ा का दर्द
तुमने भी तो नहीं
तुम समझ ही नहीं पाए
या शायद समझ कर भी
अनजान बने रहे

मैं तुम्हें सर्वांग पढ़ती रही
गुजरती रही
तुम्हारी अनुभूतियों से
सागर-सी विशाल
तुम्हारी महत्त्वाकांक्षाओं के
ज्वार से

मैं जानती हूँ
मैं कमजोर पड़ी
तो तुम्हारी महत्त्वाकांक्षा भी
कमजोर पड़ जाएगी
उसे भूमिशाई होने से
बचाने को मैंने
एक लंबा युद्ध लड़ा है
क्या तुम जानते हो