थोड़ी नमी
थोड़ी-सी धूप
थोड़ी हवा
और अंगुल-भर ज़मीन चाहिए
मुझे उगने के लिए
थोड़ा खाद
थोड़ा पानी
और निगरानी चाहिए
मुझे बढ़ने के लिए
मैं रसदार फल के भीतर
गहन अंधकार में क़ैद
नाज़ुक टहनी पर
बया के घोंसले की तरह
हिल रहा हूँ हौले-हौले
झूम रहा हूँ खेतों में
धान की बालियाँ बनकर
नदी किनारे झरबेरियों में
उगते सूर्य की तरह गमक रहा हूँ मैं ।