जल्दबाज़ी में
छूट जाता है
कुछ न कुछ
कुछ न कुछ
हो जती हैं ग़लतियाँ
हड़बड़ी में
पत्र लिखते हुए
नहीं रहती
चित्रकार के
चित्र में सफ़ाई
कहीं फीके
कहीं गाढ़े
लग जाते हैं रंग
कट जाती हैं उंगलियाँ
सब्जी काटते-काटते
जब देखते हैं हम पलट कर
बीते हुए दिनों के पन्ने
हमारी ग़लतियाँ
सबक की शक्ल में
मुस्कुराती हैं ।