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विचाराधीन / विनीत पाण्डेय

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विद्यार्थियों ने साहब से सवाल पूछा
“सर देश में जो भ्रष्टाचार है
वह कभी मिटेगा या नहीं" ?
साहब ने छूटते ही कहा
"पहले तो तुम्हारे सवाल में की क्लेश है
देश में भ्रष्टाचार है कहाँ ?
भ्रष्टाचार में देश है"
"हाँ तो सर जो भी हो मिटेगा या नहीं" ?
"देखो भ्रष्टाचार से तो सारे लोग ग़मगीन हैं
अतः इससे निपटने के लिए
कई उपाय विचाराधीन हैं
"सर ये विचाराधीन का मतलब क्या होता है” ?
“यूँ तो विचाराधीन का बड़ा भारी अर्थ है
पर 'नहीं' इसका असली और सरकारी अर्थ है”।
“तो सर फ़िर जनकल्याण कैसे होगा”?
साहब ने कहा "क्यों हम भी तो जन ही कहे जाते हैं,
तो अपना कल्याण कर के
हम जनकल्याण में अपनी भूमिका निभाते हैं"
"लेकिन सर जितना बड़ा पद
उतनी बड़ी एकाउंटेबिलिटी होती है”
“हाँ जितना बड़ा पद
उतना बड़ा अकाउंट
उसे सँभालने की एबिलिटी
यही एकाउंटेबिलिटी होती है”
“तो सर भ्रष्टाचार की आवश्यकता ही क्या है”?
"देखो हमारा उद्देश्य
सिस्टम में बदलाव लाना है
जिसके लिए सिस्टम में बने रहना ज़रूरी है
इसलिए कॉम्प्रोमाइज करना
हमारा शौक नहीं मजबूरी है
वर्ना शंटिंग में डाल दिए जायेंगे
और अगर शंटिंग में रहे
तो बदलाव कैसे लाएँगे ?
और मिडिया भी तिल को ताड़ बताती है
जरा से कॉम्प्रोमाइज को भ्रष्टाचार बताती है”
“तो सर तीन सौ,पाँच सौ,एक हज़ार करोड़ ज़रा-सा होता है”?
“देखो दुनिया ऐसे ही चलती है
अब बूँद-बूँद से घड़ा भर जाए
तो मेरी क्या ग़लती है”?
“अच्छा सर ये सब छोड़ते हैं
बात दूसरी तरफ़ मोड़ते हैं
हमें एक बात समझ में नहीं आती है
ये ब्यूरोक्रेसी, डिप्लोमेसी में
हर बात घुमा-फिरा कर क्यों कही जाती है”?
“देखो जी ऐसी जगहों पर बात
घुमा-फिरा कर बोलना ही सही होता है
बोलने वाला सीधे-सीधे कैसे बोले
उसे कुछ पता ही नहीं होता है”
“और सर अगर उसके सर पे
आ जाये कोई आँच”?
“तो उसके लिए ब्रह्मास्त्र है ना जाँच”!
“तो सर फ़िर देश कैसे चलेगा”?
“जैसे अब तक चल रहा है”
इंटरव्यू समाप्त हो गया
बच्चों को बात समझ आ गयी
कि तंत्र बड़ी भैंस है
और जनता के हाथों में बस बीन है
और देश के विकास, समृद्धि,
ख़ुशहाली के लिए असल योजनाएँ
बस विचाराधीन हैं
विचाराधीन हैं
विचाराधीन हैं