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पीड़ा / साधना सिन्हा

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पीड़ा से
कल बातें की
लगी कहने-
अच्छा लगता है
संग तुम्हारा

मुझ को औरों ने
कोसा
तुमने बाँहों में
जकड़ा।

मैं
तुम्हारी संगिनी हूँ
जन्म–जन्म की
बंदिनी हूँ

पर
रह न सकूंगी
साथ तुम्हारे
जा न सकूंगी
धरती से

रहना है
औरों के संग
शापित हूँ
आदिकाल से !

जग का दु:ख
मेरी पीड़ा
मुझ बिन जीवन
फूल बिन रंग
मैं हूँ अगर
जीवन पर अभिशाप
मैं ही हूँ
सुख का
स्रोत अपने आप ।