Last modified on 3 दिसम्बर 2008, at 02:09

उजाला / साधना सिन्हा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:09, 3 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=साधना सिन्हा |संग्रह=बिम्बहीन व्यथा / साधना सिन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मन तो सतरंगी
भटका, ताना बाना
उजला कभी
उच्छल बन
बिखरा

फिर अंधकार में
निमग्न अंतर
डूबे ही जाता क्यों
निरंतर

दुख के छोटे–छोटे
अंधियारे
तो हैं सबके
अपने अंदर

खिड़की के बाहर
बाट जोहती
सूरज की ऊनी-ऊनी किरण
चमेली की भीनी-भीनी गंध
आकुल है
आने को अंदर

पंछी चहकेंगे
जब होगा उजाला
खोलो
बंद पटल