Last modified on 3 दिसम्बर 2008, at 02:12

समझो तो / साधना सिन्हा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:12, 3 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=साधना सिन्हा |संग्रह=बिम्बहीन व्यथा / साधना सिन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

निश्चछल मन है
समझो तो
स्वच्छ चांदनी सा फैला है
खोलो बाहें
बांधो तो

होंगे अलग मन
तन भी दो होंगे
अन्तर्मन की
बहती धारा को पकड़ो तो
निश्चछल मन है
समझो तो

धारा है
बह चली अगर
मुख मोड़ , बदल
तुमसे अलग
तो
उन्मन तरंग को
रोको तो
गहरा नाता है
जानो तो
निश्चछल मन है
समझो तो

तुम तो
उज्ज्वल हिम थे
धार तो थी
तुम्हारी
उच्छल न होने दो
ध्यान दो, आधार दो
प्यार दो, दुलार दो
निश्चछल मन है
समझो तो ।