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एक दिन / संजय चतुर्वेदी

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एक दिन हमारे पास होंगे खुले हरे मैदान
चारों तरफ़ नहीं होंगी कुएँ जैसी दीवारें
नहीं खड़े होंगे संतरी
घुसने के लिए नहीं होगा कोई प्रभुताचिह्न
एक दिन नहीं दिखाना पड़ेगा
अपने खिलाड़ी होने का प्रमाण-पत्र
हर आदमी रखता होगा खेलने की इच्छा

एक दिन कोई नहीं जाएगा
तानाशाह के स्टेडियम की तरफ़।