Last modified on 9 दिसम्बर 2008, at 21:50

झूठ / विष्णुचन्द्र शर्मा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:50, 9 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णुचन्द्र शर्मा |संग्रह= }} <Poem> ट्रेन में खाल...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


ट्रेन में
खाली गलियारे में
दौड़ती बच्ची ने
अचानक पूछा
'दादी जी,
धूप कहाँ रहती है?'
'जंगल में।'
'जंगल में कौए क्या खाते हैं?'
'अमरूद।'
'अमरूद पक जाने पर
जंगल क्या क्रता है?'
'गिलहरी के साथ खेला करता है।'
'दौड़ती गिलहरी जब थक जाती है, दादी जी,
वह कहाँ सोती है?'
'दादी की गोद में।'
'भकऽ
झूठ, दादी तो मेरी है।'
ट्रेन के बाहर
जंगल ऊंघ रहा है
धूप दादी की गोद में
सोई है थकी हुई
बच्ची के साथ।