Last modified on 13 दिसम्बर 2008, at 00:42

स्वप्न-2 / पीयूष दईया

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:42, 13 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पीयूष दईया |संग्रह= }} <Poem> मैं शर्मिन्दा हूँ अपने ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं शर्मिन्दा हूँ अपने शब्दों के लिए
जिन्हें आप पढ़ रहे हैं
-यह जानते हुए भी कि ये मेरे है
और आप पढ़ रहे हैं
जैसे कि मैंने इन्हें लिखा था
कभी गोया

ताकि बची रहे सारी साँसें

जीने में
कोई जग जाय
और शर्मिंन्दा न हो
दरअसल

यह स्वप्न है