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पीला-हरा / के० सच्चिदानंदन

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जब पीला पत्ता झरता है
हरा पत्ता हँसता नहीं
वह सिर्फ़ थोड़ा-सा काँप उठता है
उस फ़ौजी की तरह
जो देख रहा है
गोली खाकर गिरते अपने पड़ोसी को।
सर्दी की बर्फ़ीली छुअन से
जब फूलने लगती हैं उसकी नसें
ध्यान आता है उसे
नियति का रंग है पीला
और वह हो जाता है सुन्न।

और पीला पत्ता सड़ता है वेग से
ताकि वह बन सके हरा पता
खिला सके फूल
अगले बसंत में
हरा पत्ता नहीं जानता कुछ भी
मरने के बाद आत्माओं के
सफ़र के बारे में।

हरे पत्ते का दुख पीला-पीला है
पीले पत्ते का सपना हरा-हरा
इसलिए जब नौजवान हँसते हैं
सूरजमुखी खिलते हैं
और.... हाँ, इसीलिए बूढ़ों के
आँसू झिलमिलाते हैं
मणियों की तरह...।
अनुवाद : डा० विनीता / सुभाष नीरव