Last modified on 19 दिसम्बर 2008, at 00:30

घर / गुरप्रीत

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:30, 19 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=के० सच्चिदानंदन |संग्रह= }} <Poem> गुम हुई चीज़ को त...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


गुम हुई चीज़ को
तलाशने के लिए
खंगाल डालती थी
घर का हर अंधेरा-तंग कोना
मेरी माँ !
बीवी भी अब ऐसा ही करती है
और अपनी ससुराल में बहन भी !

चीज़ों के गुम होने
और इनके रोने के लिए
अगर घर में अंधेरी-तंग जगहें न होंती
तो घर का नाम भी
घर नहीं होता।

मूल पंजाबी से अनुवाद : सुभाष नीरव