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उम्र / पंखुरी सिन्हा

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जैसे सुबह उठकर कोई शीशे में देखे,
कि कुछ बाल कनपटी पर सफ़ेद हो गए हैं,
कि एक रेखा खिंचती है गालों में, अब हँसने पर,
वैसे सुबह उठकर लड़की ने शीशे में देखा,
कि अब वह बिल्कुल प्यार नहीं करती,
उस आदमी से, जिसके साथ,
उसका तथाकथित प्यार का रिश्ता है,
और ज़िन्दगी उसके लिए आसान हो गई।

आते-जाते वक़्त एक तय मुस्कुराहट,
रात का एक सुदीर्घ चुम्बन,
और हस्ताक्षर, ढेर सारे हस्ताक्षर,
ढेर सारे काग़ज़ों पर वही तय हस्ताक्षर,
बैंक के, दफ़्तर के, हास्पिटल के, टैक्स के,
बच्चों के स्कूल के,
काग़ज़ों पर हस्ताक्षर
करते हुए,
एक दिन लड़की ने जाना,
ज़िन्दगी प्यार नहीं,
ज़िन्दगी व्यवस्था है।