टूटे दाँत की तरह
इन्सानियत का झूठ
पराजय की उर्वर माटी में
जुगनू डाल देता है।
रंगमंच पर एक कठपुतली महज़
रही थी ताक मेज़ पर रखा
रंगारंग फूलों का गुलदस्ता
जिसे अपनी मुद्राओं से
सूंघ गए थे दर्शक।
बाहर धारोधार बरसात
बढ़ा रही स्तब्धता
क्या यह दिन
ब्लेड बनने की दिशा में है?