Last modified on 1 जनवरी 2009, at 18:16

धूल / प्रयाग शुक्ल

धूल में पड़ी रहती हैं बहुत सी चीज़ें ।
तिनके । टुकड़े कांच के । उड़कर कहीं से
चले आये मकड़ी के जाले के तार ।
पंख । चिट्ठियों के अक्षर ।
चमकती है धूल ।

फिर गिरती हैं
नन्हीं-नन्हीं बूंदें
उठती है धूल में पड़ी विस्मृत चीज़ों
से एक महक ।