Last modified on 3 जनवरी 2009, at 12:11

हालात / नवल शुक्ल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:11, 3 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवल शुक्ल |संग्रह=दसों दिशाओं में / नवल शुक्ल }} <P...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुनने में आया है
ठीक नहीं हैं हालात
कभी भी, कुछ भी हो सकता है
शटर गिर सकते हैं
सड़कें सूनी
गलियों में लोग जमा हो सकते हैं।

यह कभी भी हो सकता है
मिठाईयाँ बाँटते समय
फोड़ते समय पटाख़े
एजेंसियों से असंयमित ख़बर आते ही
छपते ही एक बौड़म अख़बार
हताशा में एक आदमी के चीखते ही।

यह अभी भी हो सकता है
और हम अपने घरों में बंद
जो हमने नहीं चाहा कभी
दस, बीस, पचास साल के जीव्न में।