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यात्रा (एक) / शरद बिलौरे

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हम दूर देश की यात्रा पर निकलते हैं
घूमने नहीं
नौकरी करने।

हम निकलते हैं
अपने शहर से बाहर
और
किसी की पूरी ज़िन्दगी से बाहर निकल जाते हैं,
एकदम जीवित।

रेल में बैठे हुए हम
यात्रा से सम्बन्धित चीज़ों को छोड़कर
शेष सब के बारे में सोचते हैं।

कल
जब हमें अपने शहर में नौकरी मिल जाएगी
हम लौटेंगे
छुट्टियाँ बिताने नहीं,
शहर में हमेशा-हमेशा को बस जाने के लिए।

तब
क्या हम उस संसार में
उतने ही जीवित लौट पाएंगे
जहाँ से एक दिन हम
दूर देश की यात्रा पर निकले थे
नौकरी करने के लिए भी
और अपने शहर
हमेशा-हमेशा को लौटने के लिए भी।