Last modified on 4 जनवरी 2009, at 03:06

यात्रा (सात) / शरद बिलौरे

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:06, 4 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शरद बिलौरे |संग्रह=तय तो यही हुआ था / शरद बिलौरे }...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बचपन की छुक-छुक गाड़ी
देखते-देखते हो गई
दैत्याकार और दहाड़ती रेल।
वहाँ मैं
कभी गार्ड का डिब्बा होता था
कभी इंजन
कभी कण्डक्टर
यात्री कभी नहीं था।
मैं
गुड्डे-गुडियाँ फेंक कर
बचपन से बाहर निकला था
छुक-छुक गाड़ी में शामिल होने
और उसमें बैठा-बैठा ही
बड़ा हो गया।