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मकान / विजयदेव नारायण साही
अनिल जनविजय
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धीरे-धीरे यह मकान गिर रहा है
आज रात ऊपर से एक ईंट गिरी
खड़खड़ाहट की ध्वनि
मुझे डरा गई ।