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सहेली / एम० आर० रेणुकुमार

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देखा उसे एक बार
चिलचिलाती धूप में
सड़क के किनारे
पत्तों से बुनी छतरी के नीचे बैठी
वह तोड़ रही थी पत्थर
लोच नहीं था वही पुराना

वह तो
उछाल कर लोकती पत्थर
अपनी कमा उँगलियों में
कमाती मुझ से ज़्यादा नम्बर
मेरे नम्बर घटते जाते
उस पुराने खेल की धुन में
(कूट्टूकारी)

अनुवाद : राजेन्द्र शर्मा