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भूखे किसान / महावीर शर्मा

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           " भूखे किसान "

      मुश्‍किल भूखों का जीना है  !!
      मेहनत करके निज हाथों से , बेचारे खेत उगाते हैं ,
      सारे दिन खून बहा अपना , सूरज ढलने पर आते हैं ,
      वर्तमान के कष्‍टों को , मुस्‍का मुस्‍का कर सहते हैं ,
      केवल भावी की आशा में , दो दो दिन भूखे रहते हैं ,
      पकने पर फ़सल बना सोना , उनका बहुमूल्‍य पसीना है ।

      मुश्‍किल भूखों का जीना है  !!

       
      खलिहानों में निज फ़सल देख वह खड़ा खड़ा मुस्‍काता है ,
      सूदख़ोर गाड़ी में भर कर , फ़सल साथ ले जाता है ,
      यूं ही सूरज चला गया , पूनम का चांद निकल आया ,
      उसे लगा यह चांद नहीं , कोई गोल गोल रोटी लाया ,
      एक काले बादल ने आकर , उस रोटी को भी छीना है ।

      मुश्‍किल भूखों का जीना है  !!

      पीते हैं कुत्ते दूध कहीं , पर वह भूखा चिल्‍लाता है ,
      ऊंचे महलों के नीचे वह , कुटिया में रात बिताता है ,
      भूखा रहने के कारण उसकी , आंख नहीं लग पाती है ,
      यदि आंख लगे तो सपने में , बिल्‍ली रोटी ले जाती है ,
      इस डर से सोता नहीं रात भर , केवल आंसू पीना है ।

       
      मुश्‍किल भूखों का जीना है  !!