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मूँछें-1 / ध्रुव शुक्ल

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कहाँ हैं तुम्हारी मूँछें !
बाप बताओ नहीं तो श्राद्ध करो।

क्या तुमने
देखा है अपने पिता को?
अग्नि दी जिस चिता को
क्या वह पिता की थी?

अनाथ शताब्दियाँ बीत रही हैं
कल्पित पिता के सहारे
इस अनाथालय में...

पालनहार !
मैंने नहीं देखी तुम्हारी मूँछें
क्या तुमने भी
देखा था अपने पिता को ?