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प्रिया-9 / ध्रुव शुक्ल

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भूमि प्रजा और धन जुए में हार गए
वे शब्द को भी हार गए

अनर्थ भरी सभा में
घसीट कर ले आया उसे निरलंकार
निर्वसन करने को आतुर
खींचता श्याम-वर्ण केश
धोए गए जो मन्त्रपूत जल से

ज्ञानी हतप्रभ हैं !

पूछती है प्रिया--
क्या तुम्हें मुझे भी दाँव पर लगाने का अधिकार था?