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प्रिया-12 / ध्रुव शुक्ल

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शब्द अपनी राह चला जा रहा है
उसकी कोई कामना नहीम

सब उसे घेर कर आगे बढ़ रहे हैं
वह धीरे-धीरे चल रही है

किसी से कुछ नहीं कहती
कुछ कह रही है शायद- सब सुनते हैं
किसी की ओर देखती तक नहीं
सब देख रहे है- देख रही है शायद

सब सोचते हैं-
उसके चेहरे पर सूर्य उदित हो
ऎसी हवा चले
उसकी चुनरी उड़ जाए
इतना पानी बरसे
उसके वस्त्र पारदर्शी हो जाएँ
आए ऎसी बाढ़
वह पार न पा सके
रात रुक जाए गाँव में

अकेली

मेला देखने आई है प्रिया