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घोड़े-2 / दीनू कश्यप

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थोड़ी फ़ुरसत पाते ही
घोड़े निकल पड़ते हैं
हरी-भरी चरागाहों की तलाश में
घोड़े जब भरपेट होते हैं
तो हिनहिनाते हैं
दोनों पाँवों पर खड़े हो जाते हैं
डकार मार-मार बतियाते हैं
साथी घोड़ों को
सुनाते हैं गर्व से कथाएँ
खुरों की काठी से बढ़ती हुई मैत्री की
घोड़े दाँतों में घास की सींके चलाते हैं
कुटिल मुस्कान मुस्काते हैं