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शासन की बंदूक / नागार्जुन

कवि: नागार्जुन

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खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक

नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक


उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक

जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक


बढ़ी बधिरता दसगुनी, बने विनोबा मूक

धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक


सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक

जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की बंदूक


जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक

बाल न बाँका कर सकी शासन की बंदूक

1966