Last modified on 12 जनवरी 2009, at 14:32

मूँछें-8 / ध्रुव शुक्ल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:32, 12 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ध्रुव शुक्ल |संग्रह=खोजो तो बेटी पापा कहाँ हैं / ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मूँछें अपनी जगह पर कभी नहीं रहतीं
हमें भ्रम होता है कि वे अपनी जगह पर हैं

मूँछें भटक रही हैं शताब्दियों से
अपनी जगह पाने के लिए

वे आगे बढ़ रही हैं
पीछे हट रही हैं
कट रही हैं छँट रही हैं बँट रही हैं
झुका रही हैं झुक रही हैं

छाती पर चढ़कर बेटा
मूँछें खींचता है--
बचो !
मूँछें मौत की निशानी हैं