Last modified on 13 जनवरी 2009, at 22:10

प्रस्थान / आग्नेय

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:10, 13 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आग्नेय }} <poem> तुम्हें आख़िरकार देख रहा हूँ तुम्ह...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम्हें आख़िरकार
देख रहा हूँ

तुम्हारी आँखों में
गुज़रे वक़्त के आँसू हैं

मैं तुम्हें हमेशा के लिए
छोड़कर जाने वाला हूँ

यकायक देखता हूँ
तुम्हारे पीछे खड़ी
एक दूसरी स्त्री को
जो लगभग तुम्हारी जैसी है

मुझ से कह रही है
किसी को छोड़कर तुम
कैसे पा सकोगे मुझे?