Last modified on 14 जनवरी 2009, at 02:16

मुकाम / अमृता प्रीतम

Eklavya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:16, 14 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमृता प्रीतम |संग्रह= }} <poem> क़लम ने आज गीतों का क़...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

क़लम ने आज गीतों का क़ाफ़िया तोड़ दिया
मेरा इश्क़ यह किस मुकाम पर आ गया है

देख नज़र वाले, तेरे सामने बैठी हूँ
मेरे हाथ से हिज्र का काँटा निकाल दे

जिसने अँधेरे के अलावा कभी कुछ नहीं बुना
वह मुहब्बत आज किरणें बुनकर दे गयी

उठो, अपने घड़े से पानी का एक कटोरा दो
राह के हादसे मैं इस पानी से धो लूंगी...