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ख़ूबसूरत डर / ध्रुव शुक्ल

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अनन्त शून्य को भरता है
एक ख़ूबसूरत डर
जो मेरी साँस है
उड़ा देगी मेरा घर
ज़रूरी आग
जिसके लिए लड़ता हूँ
रोज़ जलाती है मुझेर
बहा के मुझ को
कहीं छोड़े
चाहे तो मेरा दम ले ले
वही तो है
जो मेरी प्यास बुझा सकती है
ख़ूब जमाता हूँ
जहाँ अपने पैर
उसी में ऎसे समाता हूँ
कि हूँ कि नहीं