Last modified on 14 जनवरी 2009, at 20:19

बाँस / ध्रुव शुक्ल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:19, 14 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ध्रुव शुक्ल |संग्रह=खोजो तो बेटी पापा कहाँ हैं / ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बाँस पक गए हैं
उन्हें छप्पर पर बिछा दो
खपरे छा दो
एक टोकनी बुन लो
अपने मन की चीज़ें भरो
कचरा भरकर फेंको
एक काँवर बना लो
कन्धों पर रखो और चल दो
पुल बनाकर पार हो जाओ

इससे पहले कि
बाँस बेसुरे हो जाएँ
और जल मरें
उनकी गाँठों को काट दो
छोटी-छोटी बांसुरियाँ बना लो
पूरे जंगल में सुर भरो