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बनैली हवा / सुधीर सक्सेना

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वह
भागती हुई
आती है
दूर जंगल के पार से
और
झूल जाती है
बाँहों में निढाल
हाँफती हुई
सिर टिका क्न्धे पर

गो मैं पहाड़ हूँ
और वह बनैली हवा ।