Last modified on 15 जनवरी 2009, at 22:22

मौत-1 / प्रेम साहिल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:22, 15 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेम साहिल |संग्रह= }} <Poem> साँस लेते ही शुरू हो जा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

साँस लेते ही
शुरू हो जाता है वह नरक
जिसे लोग जीवन कहते हैं

हर नरक किसी स्वर्ग की आस में ढोते हैं लोग

जीव के कोख में पड़ते ही
कोख में पड़ जाती है उसकी मौत भी
जीव के पैदा होते ही पैदा हो जाती है जो
बेशक नज़र नहीं आती, लेकिन
उसकी आहट तो सुनाई देती है जीव की साँसों में

साँस लेने ही से तो
शुरू हो जाता है वह नरक
जिसे लोग जीवन कहते हैं

हर नरक किसी स्वर्ग की आस में ढोते हैं लोग
जीव के कोख में पड़ते ही
कोख में पड़ जाता है उसका स्वर्ग भी
जिसे लोग मौत कहते हैं