Last modified on 15 जनवरी 2009, at 22:32

ख़्वाब में तो यहीं कहीं देखा / ओम प्रभाकर

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:32, 15 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम प्रभाकर |संग्रह= }} <Poem> ख़्वाब में यहीं कहीं दे...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ख़्वाब में यहीं कहीं देखा
वैसे, कब से तुम्हें नहीं देखा।

था न मुमकिन जहाँ कोई मंज़र
मैंने शायद तुम्हें वहीं देखा।

मैंने तुमको तुम्हीं में देखा है
और किसी में कभी नहीं देखा।

टुक ख़यालों में, टुक सराबों में
टुक उफ़क में कहीं नहीं देखा।

उन दिनों भी यहीं थे, दिल की जगह
लौटकर आज फिर यहीं देखा।

शब्दार्थ :
टुक=थोड़ा; सराब-मृगमरीचिका; उफ़क=क्षितिज