लौटी जब-जब
पराजय में थकी
अंधेरा चौतरफ़
और रास्ता ग़ुम
जब-जब हारने को हुई
कोई दूसरी थी उसके भीतर
जो उठ खड़ी हुई हर बार
लौटी जब-जब
पराजय में थकी
अंधेरा चौतरफ़
और रास्ता ग़ुम
जब-जब हारने को हुई
कोई दूसरी थी उसके भीतर
जो उठ खड़ी हुई हर बार