Last modified on 16 जनवरी 2009, at 03:58

गर्मियाँ / त्रिनेत्र जोशी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:58, 16 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिनेत्र जोशी |संग्रह=}} <poem> गुमसुम से इस मौसम मे...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गुमसुम से इस मौसम में
जब नहीं आती हवाएँ
सूखे होंठों वाली पत्तियाँ
बार-बार चोंचें खोलती चिड़ियाएँ
हरियाली पर लगी फफूँद

कोई भी नहीं आता
खिड़कियों के सामने
पंख फड़फड़ाता

उदास गुज़र जाती हैं
लड़कियाँ
और टहनियाँ
खींचती हैं साँसें

प्यास है चारों तरफ़
हाथ फैलाए

हो गया है
सोने का वक़्त

उड़ गई है नींद !