झुर-झुर बहे बहार
गमक गेंदा की आवे!
दुख की तार-तार चूनर पहने
चन्दन लगे किवाड़
पिया की याद सतावे.
भाई चुप भाभी
देता ताने
अब तो माई बाप न पहव्हानें
बचपन की मनुहार
नयन से नीर बहावे.
परदेसी ने की जो अजब ठगी
हुई धूल-माटी की
यह जिनगी
जोबन होवे भार
कि सुख सुपना हो जावे.