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लोकगीत / गोरख पाण्डेय

 
झुर-झुर बहे बहार
गमक गेंदा की आवे!
दुख की तार-तार
चूनर पहने
लौट गई गौरी

नइहर रहने
चन्दन लगे किवाड़
पिया की याद सतावे.

भाई चुप भाभी
देता ताने
अब तो माई बाप न पहव्हानें
बचपन की मनुहार
नयन से नीर बहावे.

परदेसी ने की जो अजब ठगी
हुई धूल-माटी की
यह जिनगी
जोबन होवे भार
कि सुख सुपना हो जावे.