Last modified on 16 जनवरी 2009, at 20:10

रुमाल / गोरख पाण्डेय

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:10, 16 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=गोरख पाण्डेय |संग्रह=जागते रहो सोने वालो / गोरख पाण्ड...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 
नीले पीले सफेद चितकबरे लाल
रखते हैं राम लाल जी कई रुमाल
वे नहीं जानते किसने इन्हें बुना
जा कर कई दुकानों से ख़ुद इन्हें चुना
तह-पर तह-करते खूब सम्हाल-सम्हाल
आफ़िस जाते जेबों में भर दो-चार
हैं नाक रगड़ते इनसे बारम्बार
जब बास डाँटता लेते एक निकाल
सब्ज़ी को लेकर बीवी पर बिगड़ें
या मुन्ने की माँगों पर बरस पड़ें
पलकों पर इन्हें फेरते हैं तत्काल
वे राजनीति से करते हैं परहेज़
भावुक हैं, पारटियों को गाली तेज़
दे देते हैं कोनों से पोंछ मलाल
गबड़ियों से आजिज़ भरते जब आह
रंगीन तहों से कोई तानाशाह
रच कर सुधार देते हैं हाल.