कितना भीग जाता है मेरा मन
खुली-खुली पलकों से आकर
टकराता है घर
मेरा देश
पूरा परिवेश
खुलती हैं घुमावदार गलियाँ
उनमें खेलने लग पड़ता है बचपन
बतियाती हैं पड़ोस की अधेड़ महिलाएँ
मज़हब से परे होकर
एक बूंद आँसू से धुल जाती हैं
शिकायतें
जलावतनी में जब देखता हूँ
किसी भी कशमीरी मुसलमान को