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खेल / नवीन सागर

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स्टेशन साथ कोई आया नहीं
रेल के भीतर से
हिलता बाहर मेरा हाथ अकेला ।

छूटा शहर के कई घरों में
यहाँ-वहाँ
कई शहर छोड़ता आख़िरकार
इस छोटी-सी दुनिया में रेल
जा रही है गोलाकार
हर स्टेशन से रेल में चढ़ता
उतरता हर स्टेशन पर
बस्ती की ओर जाता दिखा
जाती हुई रेल से
नहीं ! नहीं ऊबता
आने-जाने के खेल से।