सात साल बाद
मैं एक बार फिर ईर्ष्या करना चाहती हूँ
एक तिनका उठाए
वह आए
और अग्नि से रीत गए प्रान्त में उसे रख के चली जाए
उसे, उस अन्य को
अन्य की तरह ही देख पाऊँ
आत्मीया की तरह नहीं
जिस पर होनी वैसे ही मंडराती है
जैसे मुझ पर
उसे लेकर
मैं सृष्टि के सौत तत्त्व में ग़र्क होना चाहती हूँ
इस शिखर से उतर जाना चाहती हूँ
जहाँ भूत हैं जो छूते नहीं हैं
प्यास लगने से पहले ही मिट जाती है
जहाँ बिम्ब भी हिम से निम्न किसी स्तर के नहीं होते
जहाँ अभाव
एक शान्त कुत्ते की तरह स्वर्ग की ओर चल रहा होता है