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बच्चे / मोहन साहिल

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खेलना चाहते हैं बच्चे
मिट्टी, पत्थर और पानी से
कपड़े गंदे हो जाने के भय से
हमने थमाए कृत्रिम खिलौने
 
बच्चे दौड़ना चाहते हैं
ताज़ा हरी घास पर
सूंघना चाहते हैं ताज़ा फूलों की सुगंध
कलाबाजियाँ खाना चाहते हैं बर्फ़ पर
उन्हें कमरों में धकेल दिया गया
असभ्य हो जाने के भय से

बच्चे चाहते हैं
रोना और हँसना खुलकर
पूछना चाहते हैं तारों का रहस्य
तुम्हारे खीझने पर चिल्लाना
गुस्सा होना भी चाहते हैं
बच्चे मगर डाँट से सहमे रहे

छोटे बच्चे
माँ को सताना चाहते हैं
मचाना चाहते हैं ऊधम
घर-घर खेलना चाहते दिन भर
मगर भारी बस्ते लाद कर
उन्हें स्कूल भेजा गया