चींटी चली ले अनाज का दाना
दाना तो क्या दाना तो चिड़िया ले उड़ती है
यह था दाने का कण दाने का कोई सौंवा हिस्सा
पक्की टाइलों के चमकीले फर्श में
सुरक्षा और सफाई के कड़े और मुस्तैद इँतजाम में
चली ले चींटी अनाज का कण
किस कोने से निकली कमरे के किस कोने में जाती है
कहाँ से मिला होगा दाने का कण
बच्चे की जूठन या मेहमान की लापरवाही
दाने का कण रोटी का होगा डबलरोटी का
पीजा का या केक का
ताजा होगा या बासा कल या परसों का
या होगा बाजार से आई बनी बनाई किसी और चीज का
होगा अगर गेंहूँ का तो किस दुकान से आया होगा
सुपर बाजार या छोटे बणिए का
राशन का होगा या खुले बाजार का
हरियाणा का या खण्डवा का
बीज किस सँस्थान में पनपा होगा
पुश्तैनी बीज महानगर तो क्या पंहुचेगा
वैज्ञानिक मगर विदेश जा पँहुचा होगा
क्या पता गेंहूँ आयात वाला हो
संसद गूँजी होगी पहले भी बाद में भी
अगर सिर्फ बीज होगा आयातित
तो भी लँबा सफर तय किया होगा गेंहूं ने
न भी तो भी क्या खबर किन किन जहाजों ट्रकों ट्रेक्टरों बोरों में लदा होगा
गोदामों में ठुँसा होगा
हम्मालों मजदूरों के पसीने को
बाबुओं अफसरों नेताओं को नजदीक से निरखा होगा गेंहूं ने
चींटी को नहीं पता दाने का इतिहास
वह तो जिसने खाया उसने भी क्या जाना
हांलांकि अखबार सभी ने पढ़ना सीखा है
यह भी हो सकता है दाने का कण
उनका न हो जो अब इस मकान में रहते हैं
वो हो उनका जो रहते थे साल भर पहले या उससे भी पहले
अखबारें तो वे भी पढ़ते थे
उनका भी न हो उन मजदूरों का हो
जो टाट की टट्टियों में रहते थे
इस आलीशान इमारत को बनाने के वास्ते इसी जगह
सिर्फ कँक्रीट थे रेत बजरी और पत्थर थे और चूल्हा जलता था
विकास की दावानल भड़की है
महानगरों नगरों कस्बों गांवों तक में
चींटी का क्या भरोसा
निकाल लाई हो नींव की गहराइयों से
जितनी छोटी उतनी खोटी
वे अखबार नहीं पढ़ते थे
क्या पता दाने का यह कण गेंहूं के उस
ढेर का हिस्सा हो जो मोहनजोदाड़ो की खुदाई में मिला
और संग्रहालय में रखा है सजाकर काला काला
सभ्यता की निशानी अमर
अगर यह कण गेंहूँ का न गुड़ का हो
तो कहां उलझन घट जाएगी
पर यह चींटी जाती है किस कोने में
सोच सोच उलझन और बल खाती है।
(1997)