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मत स्पर्श जगाईए / ओमप्रकाश सारस्वत

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इस मादक मौसम में
यूँ मत इठलाइए,
कलियों की वादी को
यूँ मत सुलगाइए
इक तो यह मुग्धा गँध
विभ्रम के छँद पढ़ी
अब और इसे मत आप
छूकर बहकाइए
यह आम्रपाली कोयल
श्रृंगारशती का रूप
अब और इसे मत आप
रसभेद पढ़ाइए
यह टेसू कामीदूत
अँगारक-पत्र लिए
अब इससे बचकर आप
संधि लिखवाइए
यह फाल्गुनी-इच्छा
रोमिल होने को है
अब आप कृपा करके
मत स्पर्श जगाइए