Last modified on 31 जनवरी 2009, at 21:42

कहते "इस प्रणयी से पूछो क्यों व्योम जलद से भर जाता। / प्रेम नारायण 'पंकिल'

218.248.67.35 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 21:42, 31 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल' |संग्रह= }} Category:कविता <poem> कहत...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कहते "इस प्रणयी से पूछो क्यों व्योम जलद से भर जाता।
क्यों स्निग्ध-शान्त सोये शिशु-मुख पर ‘पंकिल’ हास बिखर जाता।
है मुझे ज्ञात क्यों दीप-शिखा पर शलभ कलेवर दहता है।
क्यों उडु-नवनीत-हेतु अरूणिम संध्या-घन-दधि रवि मथता है।
पतझर-परिछन्न-निशा में भी मकरंद उदधि क्यों बहता है।
क्यों नित्य प्रतीची-प्राची मुख पर अरूण लालिमा मलता है”?
ढूँढ़ती प्रबोधन-पटु ! तुमको बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥57॥