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कहते तुम, “जब जलक्रीडन करती प्रेमद सुन्दरि कोटि गुना / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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कहते तुम, “जब जलक्रीडन करती प्रेमद सुन्दरि कोटि गुना।
कुच-कलश-गलित काश्मीर-वहन से होती धन्य-धन्य यमुना।
मेरी निधि, मेरी प्रेयसि, तेरा तन-क्षालित कालिन्दी-जल।
भर देता है दर्शन से ही तेरी रति का आवेग प्रबल।
तव करतल-स्पर्श सनाथकृता सुन्दरि! कोमल तरु-लतिकायें।
करतीं सनाथ तव केलि-सदन-गत शुक-मयूर-मृग-मालायें”।
आ! रीता केलि-सदन, विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥128॥