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कैसे विस्मृत हो गया तुम्हें प्रिय! केलि-कुंज कालिन्दी-तट / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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कैसे विस्मृत हो गया तुम्हें प्रिय! केलि-कुंज कालिन्दी-तट।
कैसे भूले गोपालों के साँवलिया! वचन सुधा लटपट।
कैसे भूली पछाड़ खा गिरती गैया हा! यशुमति मैया।
राधा के आँसू भूल गये कैसे बलदाऊ के भैया।
कैसे भूली कदम्ब-पादप की छाया अहो नन्दलाला।
बेचती ‘कृष्ण लो कृष्ण’ टेर दधि भूली क्या अहीर-बाला।
दिन गिनते अँगुरी घिसी, विकल बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥132॥