पोर-पोर
बसी
गन्ध
अनजान-सी
भर गयी
पंछियों की कतार से
अरगनी
सूने
आसमान की
हवा के झूले पर बैठ
आँगन में उतरी है
ऋतु
फिर
मेहमान सी
पोर-पोर
बसी
गन्ध
अनजान-सी
भर गयी
पंछियों की कतार से
अरगनी
सूने
आसमान की
हवा के झूले पर बैठ
आँगन में उतरी है
ऋतु
फिर
मेहमान सी