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पलाश-वन / केशव

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एक पंक्ति भी और
ले जाएगी हमें दूर
बहुत
      दूर
कुछ मत कहो
रहने दो
तमाम दुनिया को
एक विन्दु की भांति स्थिर

बहने दो
इस संगीत में
डूबी हुई नदी को
क्या पता
उग आए कौन सा पल
स्पर्शों को
अनकहा कहने दो